अंतरा भाग 2 – कक्षा 12 के लिए हिंदी (ऐच्छिक) की पाठ्यपुस्तक काव्य खंड – मलिक मुहम्मद जायसी: बारहमासा
कक्षा 12 हिंदी (ऐच्छिक) की पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 के काव्य खंड में शामिल मलिक मुहम्मद जायसी की कविता बारहमासा का विस्तृत सारांश, व्याख्या, प्रश्न और उत्तर।
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पूर्ण अध्याय सारांश एवं विस्तृत नोट्स - मलिक मुहम्मद जायसी हिंदी एनसीईआरटी कक्षा 10 क्षितिज भाग 2
यह अध्याय मलिक मुहम्मद जायसी की प्रसिद्ध प्रेमकाव्य 'पद्मावत' से ली गई 'बरहमासा' पर आधारित है। यह सूफी काव्य की परंपरा का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें वियोग की पीड़ा को मौसम के माध्यम से चित्रित किया गया है। अध्याय में कवि की जीवनी, कविता का विश्लेषण, प्रश्न-अभ्यास, योग्यता-विस्तार और शब्दार्थ शामिल हैं।
अध्याय का उद्देश्य
मलिक मुहम्मद जायसी की जीवनी समझना।
बरहमासा काव्य का भावार्थ और साहित्यिक महत्व।
सूफी भक्ति और वियोग भाव का विश्लेषण।
मुख्य बिंदु
जायसी सूफी कवि हैं, पद्मावत उनकी प्रमुख रचना।
बरहमासा: 12 मासों में वियोग का वर्णन।
थीम: विरहिणी का दुख, प्रकृति से संवाद।
भाषा: अवधी, लोकभाषा का प्रयोग।
मलिक मुहम्मद जायसी की जीवनी - पूर्ण विवरण
जन्म: 1492 ई., जायस (अमेठी, उत्तर प्रदेश) में।
मृत्यु: 1542 ई.।
शिक्षा: प्रारंभिक शिक्षा जायस में, बाद में दिल्ली और अन्य स्थानों पर। फारसी, अरबी और हिंदी का ज्ञान।
व्यक्तित्व: सूफी संत, सिद्ध योगी। वैराग्यपूर्ण जीवन, भक्ति और प्रेम के उपासक।
साहित्यिक योगदान: सूफी मत के प्रचारक। पद्मावत के माध्यम से प्रेम की आध्यात्मिकता का चित्रण। अवधी भाषा को साहित्यिक ऊँचाई प्रदान की।
प्रमुख रचनाएँ:
पद्मावत (1526-27 ई.) - प्रेमकाव्य।
अकबरनामा, कनहावली।
विशेष: पद्मावत रानी पद्मिनी और अलाउद्दीन खिलजी की कथा पर आधारित। बरहमासा इसका भाग, विरहिणी के भाव व्यक्त।
टिप: जीवनी को बिंदुवार पढ़कर आसानी से याद करें। सूफी परंपरा पर फोकस।
बरहमासा - पूर्ण पाठ एवं व्याख्या
यह कविता पद्मावत से ली गई है, जिसमें विरहिणी 12 मासों में अपने प्रिय के वियोग का वर्णन करती है।
पूर्ण पाठ
(1) चैत्र मास
अपन रस बरसै पवन बहि आवै।
कोयल की पुकार सुनि नाहि जावै।
हरि हरि बिरहा तन भये सोक निरंतर।
पवन पवन बहि आवै।
(2) वैशाख मास
सुगंध बरसै पवन बहि आवै।
कली खिलावत देखि नाहि जावै।
हरि हरि बिरहा तन भये सोक निरंतर।
पवन पवन बहि आवै।
(3) ज्येष्ठ मास
लागत हिम गर्मी पवन बहि आवै।
तन तन जलन करि नाहि जावै।
हरि हरि बिरहा तन भये सोक निरंतर।
पवन पवन बहि आवै।
(4) आषाढ़ मास
बरसत बरसि पवन बहि आवै।
धरनि धरनि जल भरि नाहि जावै।
हरि हरि बिरहा तन भये सोक निरंतर।
पवन पवन बहि आवै।
बंध-वार व्याख्या
प्रथम बंध (चैत्र):
विरहिणी को वसंत के सौंदर्य में भी वियोग का दुख। पवन और कोयल की पुकार विरह को बढ़ाती है।
व्याख्या: प्रकृति का रस विरहिणी को पीड़ा देता है।
द्वितीय बंध (वैशाख):
फूलों की सुगंध और कली खिलना वियोग की याद दिलाता है।
व्याख्या: सौंदर्य दुख का कारण बनता है।
तृतीय बंध (ज्येष्ठ):
ग्रीष्म की तपन तन को जलाती है।
व्याख्या: शारीरिक पीड़ा भावनात्मक दुख से जुड़ती है।
चतुर्थ बंध (आषाढ़):
वर्षा में भी मन शांत नहीं।
व्याख्या: प्रकृति का परिवर्तन विरह को गहरा करता है।
समग्र विश्लेषण
भाव: वियोग, सूफी प्रेम।
शिल्प: दोहा-चौपाई; अलंकार (अनुप्रास)।
थीम: मौसम और विरह का संवाद।
प्रश्न-अभ्यास - एनसीईआरटी समीक्षा
1- अपन रस बरसै पवन बहि आवै। कोयल की पुकार सुनि नाहि जावै। – पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वसंत में पवन रस बरसाती, कोयल कूकती है।
विरहिणी को शांति नहीं मिलती।
2- हरि हरि बिरहा तन भये सोक निरंतर। में निहित व्यंजना स्पष्ट कीजिए।