अंतरा भाग 2 – कक्षा 12 के लिए हिंदी (ऐच्छिक) की पाठ्यपुस्तक काव्य खंड – कुकुआन: दोह
कक्षा 12 हिंदी (ऐच्छिक) की पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 के काव्य खंड में शामिल कुकुआन की कविता दोह का विस्तृत सारांश, व्याख्या, प्रश्न और उत्तर।
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कुकुआन: दोहे - हिंदी साहित्य अध्याय अल्टीमेट स्टडी गाइड 2025
कुकुआन: दोहे
हिंदी साहित्य अध्याय: पूर्ण सारांश, जीवनी, दोहे, प्रश्न-उत्तर | एनसीईआरटी कक्षा 12 नोट्स, उदाहरण, क्विज़ 2025
पूर्ण अध्याय सारांश एवं विस्तृत नोट्स - कुकुआन हिंदी एनसीईआरटी कक्षा 12
यह अध्याय रीतिकालीन कवि कुकुआन के दोहों पर आधारित है। कुकुआन प्रेम की पीड़ा के कवि हैं, जिनकी रचनाएँ लटकू के प्रति उनके प्रेम को व्यक्त करती हैं। अध्याय में कवि की जीवनी, दोहों का विश्लेषण, प्रश्न-अभ्यास, योग्यता-विस्तार और शब्दार्थ शामिल हैं।
अध्याय का उद्देश्य
कुकुआन की जीवनी समझना।
दोहों का भावार्थ और साहित्यिक महत्व।
रीतिकालीन काव्य शैली और भाषा का विश्लेषण।
मुख्य बिंदु
कुकुआन रीतिकाल के प्रमुख कवि हैं।
दोहे प्रेम की पीड़ा और भक्ति को व्यक्त करते हैं।
भाषा: ब्रजभाषा, अलंकारों का सुंदर प्रयोग।
थीम: विरह वेदना, प्रेम की गहनता।
कुकुआन की जीवनी - पूर्ण विवरण
जन्म-मृत्यु: 1673-1760, दिल्ली के चांदनी चौक क्षेत्र के रहने वाले।
जीवन: लटकू नामक स्त्री से प्रेम, जिसके कारण बाजार में भिखारी बने। चांदनी चौक ने निकाला, लटकू की चोरी ने पीड़ा दी। वैष्णव भक्त बने, भगवान के रूप में जीवन व्यतीत किया।
व्यक्तित्व: प्रेम के कवि, भावुक हृदय। रचनाओं में लटकू का सकारात्मक उल्लेख।
साहित्यिक योगदान: प्रेम की गहन अभिव्यक्ति। रीतिकालीन काव्य में भाव की गहराई और कला का समन्वय। भाषा: परिपक्व ब्रजभाषा, शब्दों का कुशल प्रयोग। रचनाएँ: लटकू लखन, होग युगल, पीकदान चरित, जोसफरी जयचंद, आदि।
विशेष: लोकगीतकार, श्रृंगार रस प्रधान। दोहे लटकू के दर्शन की व्यथा व्यक्त करते हैं।
टिप: जीवनी को बिंदुवार पढ़कर याद करें। प्रेम और भक्ति का संतुलन समझें।
दोहे - पूर्ण पाठ एवं व्याख्या
प्रथम दोहा
बहुत दिनहु को भोरि कछु पर,
कछु बरजफुल भरि लिये तोत।
धर धर कौन चढ़ै मन कौन को,
सर सर सिरफिरि गहि नहिं तोत॥
कछु फूलेहु की फूलेहु रस पिअहु तो,
अब नहिं छूजि कू कुकुआन सोंत॥
भोरि लगे हैं कौ सर तोरि इकु जियु,
पियरे पगु यह लटकूहि तोत॥
व्याख्या
कवि बहुत दिनों से भोर (सुबह) का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन अब बरजफूल (फूलों का रस) भरकर तोते (प्रियतम) नहीं आते। कौन चढ़े मन को, सिरफिरि (उन्माद) में गले नहीं लगाते। अब फूलों का रस पीने न आएंगे। कुकुआन को छूना छोड़ दिया। भोर लगी है, तोरी (प्राणों) की तरह जीवित, लेकिन लटकू को पाने के लिए पैर बढ़ाए। भाव: विरह वेदना, प्रेम की तीव्रता।
द्वितीय दोहा
आकुल बेदुरु दुखि होहि तो कहहि कौन को?
गुन गावहि तो कहहि कौन को।
जेहि कौतुकहि तो कहहि कौन को?
नाहिं तो कहहि तो कहहि कौन को॥
ममु गुन गावहि तो कहहि कौन को?
बेदुरु दुखि होहि तो कहहि कौन को।
व्याख्या
आकुल (व्याकुल) होकर दुखी होने पर कौन कहेगा? गुण गाने पर कौन? कौतुक (प्रशंसा) करने पर कौन? न कहने पर भी कौन? मेरे गुण गाने पर कौन? दुखी होने पर कौन? भाव: प्रेम में व्यथा, कोई सांत्वना न देना। कवि की एकाकी पीड़ा।
समग्र विश्लेषण
भाव: प्रेम पीड़ा, लटकू के प्रति व्यथा।
शिल्प: दोहा छंद, अलंकार (अनुप्रास, रूपक)।
थीम: विरह, भक्ति मिश्रण।
प्रश्न-अभ्यास - एनसीईआरटी समीक्षा
1- कवि ने 'पियरे पगु यह लटकूहि तोत' क्यों कहा है?
उत्तर:
लटकू के दर्शन की तीव्र इच्छा।
विरह में पैर बढ़ाना, लेकिन न मिलना।
2- कवि भिखारी होकर प्रेयसी के कौन से रूप देखना चाहता है?
उत्तर:
दर्शन रूप।
भिखारी अवस्था में भी प्रेम की तीव्रता।
3- कवि ने किस प्रकार की प्रशंसा से 'दुख खोहि गस' कहा है?
उत्तर:
व्यंग्यपूर्ण प्रशंसा।
दुख में प्रशंसा न करना।
4- कुकुआन की रचनाओं की भाषाई विशेषताओं को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
परिपक्व ब्रजभाषा।
शब्दों की ओजस्विता, अलंकारों का प्रयोग।
5- निम्न पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों की पहचान कीजिए।